श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को होली की अनूठी कहानी सुनाई थी होली की इस कहानी में छुपा है संसार का नियम

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से होली की शुरुआत की कहानी के विषय में प्रश्न किया। इस सवाल को सुनकर श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर होली की कहानी बतानी शुरू की। श्रीकृष्ण ने बताया, कि एक बार श्रीराम के पूर्वज रघु शासन में एक असुर महिला हुआ करती थी। वह असुर महिला गांव के लोगों को मारकर उन्हें खा जाया करती थी। धीरे-धीरे बच्चे भी उसका शिकार बनने लग गए। यह देखकर गांव वाले बहुत परेशान हो गए। उनकी इस परेशानी को दूर करने के लिए एक दिन गुरु वशिष्ठ उन्हें बताया कि उस असुर महिला को मारा जा सकता है, उन्होंने इसका मार्ग बताते हुए कहा कि गांव के सभी बच्चों को मिट्टी से उसकी मूर्ति बनाकर एक चौराहे पर रखनी होगी। इससे चारों तरफ उपले, लकड़ियां और घास-फूस जमा करके इस तरह रख दे, जिससे कि वो असुर महिला अपनी मूर्ति ना देख पाए। इसके बाद उस जगह की पूजा करके घास-फूस सहित उसकी मूर्ति जला दें, तो वो असुर महिला मर जाएगी और गांववालों को उससे मुक्ति मिल जाएगी। गुरु वशिष्ठ की बात मानकर बच्चों और गांववालों ने ऐसा ही किया। इसके बाद असुर महिला के मरने पर सभी गांववालों ने नृत्य किया और खुशी-खुशी सभी ने मिठाइयां बांटकर बुराई पर अच्छाई की जीत मनाई।

इस कहानी को सुनकर युधिष्ठिर ने फिर से प्रश्न किया कि क्या होलिका दहन भक्त प्रह्लाद से नहीं जुड़ा? यह तो बिल्कुल ही अलग कहानी है। युधिष्ठिर का सवाल सुनकर श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर कहा- “हे युधिष्ठिर इस संसार में हर युग में वही घटनाएं बार-बार घटती हैं। जो हो रहा है, वो पहले भी हो चुका है और जो आज हो रहा है, वो कल भी होगा। हर घटना में इससे जुड़े चरित्र बदल सकते हैं लेकिन उस घटना की सीख वही रहती है। जैसे, होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। अगर होलिका आग में नहीं जली होती, तो उसी तरह की कोई बुरी शक्ति या प्राणी का अंत भी इसी तरह होता। जैसे, जिस तरह श्रीराम ने रावण को मारने के बाद अयोध्या में वापसी करके राम राज्य स्थापित किया था। उसी तरह हर युग में बुराई का अंत होकर फिर से राम राज्य स्थापित होना ही है। यह घटना बार-बार हर युग में घटती रहेगी। इस घटना से जुड़े पात्र बदल सकते हैं लेकिन घटनाएं संसार का अर्थ और नियम समझाने के लिए निरंतर हर युग में घटती रहती हैं। यही संसार का नियम है। हर एक युग इसी तरह से चलता रहता है। इस कारण से मनुष्य को अपने कर्मों की प्रधानता को समझकर अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। कर्म सबसे सर्वोपरि है।”

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