आपातकाल पर अकेले रह गई कांग्रेस! प्रस्ताव पर सत्ता पक्ष के साथ गई सपा, टीडीपी, टीएमसी

नई लोकसभा की कार्यवाही दिलचस्प ढंग से शुरू हुई। नवनिर्वाचित अध्यक्ष ओम बिरला की तरफ से इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए लगाए गए आपातकाल की निंदा का प्रस्ताव पढ़ा गया। खास बात रही कि इस प्रस्ताव पर इंडिया ब्लॉक में फूट नजर आई। इस दौरान सदन में कांग्रेस ने खुद को अलग-थलग पाया। बीजेपी के अलावा इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के अलावा डीएमके और तृणमूल कांग्रेस ने भी निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया। इमरजेंसी की 50वीं बरसी पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा ने सदन में निंदा प्रस्ताव पारित किया गया।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया। भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था।

सत्र के उद्घाटन के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आपातकाल की निंदा किए जाने के बाद कांग्रेस को यह प्रस्ताव अप्रत्याशित लगा। इस दौरान कांग्रेस से न केवल सपा और द्रमुक जैसे सहयोगियों से अलग हो गई बल्कि आश्चर्यजनक रूप से तृणमूल कांग्रेस भी अलग हो गई। जब बिरला ने प्रस्ताव पढ़ना शुरू किया, जिसमें विशेष रूप से इंदिरा गांधी और कांग्रेस का नाम “बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान, अवैध गिरफ्तारी, प्रेस सेंसरशिप और अन्य ज्यादतियों” पर हमले के लिए लिया गया था, तो केवल कांग्रेस के सांसदों ने ही गलियारे से विरोध किया।

वहीं, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस सहित बाकी विपक्षी सांसद अपनी सीट पर ही बैठे रहे। कांग्रेस के सहयोगी दलों ने भी स्पीकर की तरफ से आपातकाल के पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त करने और “युवा पीढ़ी को याद दिलाने” के लिए दो मिनट का मौन रखने का आग्रह किया, ताकि आपातकाल के 21 महीनों में क्या हुआ। बिरला ने कहा कि इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक ‘अन्याय काल’ था, एक ‘काला कालखंड’ था। आपातकाल लगाने के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावना को कुचलने का काम किया।

कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी के अलावा यह त्वरित कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे एक बार फिर बीजेपी की तरफ से कांग्रेस को ‘संविधान-खतरे में’ वाले दांव के रूप में जवाब देने की प्रतिबद्धता का संकेत मिलता है। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल ने इस मुद्दे का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया था। साथ ही यह भी पता चलता है कि बीजेपी इंडिया ब्लॉक में मतभेदों को बढ़ाने के लिए तैयार है।

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